बहिनों और भाइयों में आपका ध्यान, एक शिक्षित वर्ग की प्रमुख समस्या पर दिलाना चाहता हूँ, कि एक शिक्षित युवा आखिर क्यों बेरोजगार रहने पर मजबूर होता है?, क्यों समाज उसका शोषण करने पर उतारू होता है?, क्या वो अपने काम के रुपए तय नहीं कर सकता है?, क्या उसने लाखों रूपये खर्च करके शिक्षा सिर्फ इसलिए पाई है कि वह चंद सिक्कों के लिए गुलामी करता फिरे? या बेरोजगारी में अपने सपनों को टूटता हुआ चुपचाप देखे और किसी से कुछ ना कह सके? या उसकी कीमत एक मजदूर से भी गई-बीती है, जो हमारा समाज उसे चंद सिक्के ही दे पाता है। आखिर ये शोषणकारी व्यवस्था किसने बनाई है, जो एक मजदूर को उसकी दैनिक मजदूरी 350₹ (आज के अनुसार) दे देती है और दूसरी तरफ एक नौजवान एक स्कूल में बहुत ही कम कीमत पर अध्यापन कार्य करने के लिए मजबूर होता है, क्या उस टीचर के कार्य की वैल्यू एक मजदूर के कार्य से कम क्यों है? क्या इस शोषणकारी व्यवस्था का अंत नहीं हो सकता है?
मान लीजिये आपको अपने घर में लौहे की चौखटों में कुंडी लगाने के लिए बेल्डिंग करानी है, आप बेल्डर से बात करते हैं, भाई मेरे घर में 8 दरवाजों में कुंडी लगाने के लिए आप बेल्डिंग कर देंगे, कितने रुपये लेंगे, तो वो आपको इस मामूली काम के 1000₹ बताएगा, आप बहुत पैसे कम करने की कोशिश करेंगे, तो वो 800₹ में मानेगा, चाहे आप पूरा एटा घूमकर देख ले फिर भी प्रत्येक बेल्डर 1000/1200₹ से कम की बात नहीं करेगा।
ये एक वास्तविक उदाहरण है। क्या एक शिक्षित युवा किसी स्कूल में ये कह सकता है कि मैं प्रत्येक दिन के 1000₹ लूँगा? जरा सोचकर देखिए, कैसे हमारा समाज शिक्षित लोगों के साथ भेदभाव करता है? क्या इस शिक्षा का नौकरी के अलावा भी कुछ काम है या ये शिक्षा सिर्फ बेरोजगारों की फौज बनाने के लिए है?
भारत की शिक्षा कब उधोगपरक बन सकेगी?, जब किसी को बेरोजगार नहीं रहना पड़ेगा। युवा उद्योग परक शिक्षा प्राप्त करके स्वयं अपना बिजनेस स्थापित कर सकेगा और रोजगार प्राप्त करने के साथ-2 हजारों लोगों को रोजगार देगा।